शेयर बाज़ार का रहस्य: हाई डिलिवरी स्टॉक्स और हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम में क्या है असली अंतर? जानें!

By Amardeep Singh

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शेयर बाज़ार में निवेश करना एक रोमांचक यात्रा हो सकती है, लेकिन सही जानकारी के बिना यह जोखिम भरा भी हो सकता है। नए निवेशकों के लिए, और कभी-कभी अनुभवी ट्रेडर्स के लिए भी, कुछ बुनियादी अवधारणाओं को समझना ज़रूरी है। ऐसी ही दो महत्वपूर्ण अवधारणाएँ हैं हाई डिलिवरी स्टॉक्स और हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स। ये दोनों शब्द अक्सर इस्तेमाल किए जाते हैं, पर इनके अर्थ और मायने बिल्कुल अलग होते हैं। इन दोनों के बीच के फर्क को समझना आपकी निवेश रणनीति को मज़बूत बना सकता है और आपको बेहतर निर्णय लेने में मदद कर सकता है।

आज हम इन दोनों प्रकार के स्टॉक्स को विस्तार से समझेंगे। हम जानेंगे कि ये क्या हैं, इनमें क्या अंतर है, और आपकी निवेश शैली के लिए कौन सा विकल्प बेहतर हो सकता है। हमारा लक्ष्य आपको यह समझने में मदद करना है कि कब किसी स्टॉक में अधिक डिलीवरी दिखना अच्छा संकेत है, और कब उच्च ट्रेडिंग वॉल्यूम केवल शॉर्ट-टर्म ट्रेडिंग गतिविधि को दर्शाता है।

हाई डिलिवरी स्टॉक्स (High Delivery Stocks) क्या होते हैं?

जब आप शेयर बाज़ार से कोई शेयर खरीदते हैं, तो आप उसे दो तरह से रख सकते हैं। या तो आप उसे उसी दिन बेच दें (जिसे इंट्राडे ट्रेडिंग कहते हैं) या फिर आप उसे अपने डीमैट खाते में ट्रांसफर करा लें। जब शेयर खरीदे जाते हैं और ट्रेडिंग के बाद निवेशकों के खाते में ट्रांसफर हो जाते हैं, तो उन्हें ‘डिलिवरी स्टॉक्स’ कहा जाता है। इसका मतलब है कि निवेशक उन शेयरों को लंबे समय तक रखने का इरादा रखते हैं।

डिलिवरी प्रतिशत का महत्व

डिलिवरी प्रतिशत एक बहुत ही महत्वपूर्ण आंकड़ा है। यह हमें बताता है कि कुल ट्रेडिंग वॉल्यूम में से कितने प्रतिशत शेयर डिलिवरी मोड में खरीदे गए। उदाहरण के लिए, यदि किसी स्टॉक के 1 लाख शेयर ट्रेड हुए, और उनमें से 60,000 शेयर निवेशकों के खातों में ट्रांसफर हो गए, तो डिलिवरी प्रतिशत 60% होगा।

अगर डिलिवरी प्रतिशत हाई है, तो यह साफ इंगित करता है कि निवेशक स्टॉक को होल्ड करना पसंद कर रहे हैं। वे इसे तुरंत बेचने के बजाय भविष्य के लिए अपने पास रख रहे हैं। यह एक सकारात्मक संकेत माना जाता है। हाई डिलिवरी स्टॉक्स का सीधा मतलब है कि निवेशक लंबी अवधि के भरोसे स्टॉक खरीद रहे हैं। वे कंपनी की भविष्य की संभावनाओं पर दांव लगा रहे हैं।

क्यों चुने जाते हैं हाई डिलिवरी स्टॉक्स?

  • लंबी अवधि का निवेश: ऐसे स्टॉक आमतौर पर उन निवेशकों द्वारा पसंद किए जाते हैं जो दीर्घकालिक लाभ कमाना चाहते हैं। वे मानते हैं कि कंपनी का मूल्य समय के साथ बढ़ेगा।
  • फंडामेंटल स्ट्रॉन्ग स्टॉक्स: हाई डिलिवरी अक्सर फंडामेंटली स्ट्रॉन्ग स्टॉक्स में देखी जाती है। ये वे कंपनियाँ होती हैं जिनकी वित्तीय स्थिति मज़बूत होती है, अच्छे प्रबंधन होते हैं, और भविष्य की विकास की संभावनाएँ होती हैं। जैसे आप कोई घर खरीदते हैं, तो आप उसे तुरंत बेचने के बजाय लंबे समय के लिए रखते हैं, ठीक वैसे ही निवेशक इन कंपनियों पर भरोसा करते हैं।
  • स्थिरता का संकेत: उच्च डिलिवरी प्रतिशत यह भी दर्शाता है कि स्टॉक में ‘स्मार्ट मनी’ यानी बड़े और संस्थागत निवेशक भी शामिल हैं। वे आमतौर पर अच्छी रिसर्च के बाद ही लंबी अवधि के लिए निवेश करते हैं।
  • कम जोखिम: इंट्राडे ट्रेडिंग की तुलना में, डिलिवरी आधारित निवेश में दैनिक उतार-चढ़ाव का तनाव कम होता है। निवेशक बाज़ार की छोटी-मोटी हलचलों से प्रभावित नहीं होते।

उदाहरण

यदि किसी स्टॉक का डिलिवरी प्रतिशत 60% या उससे ऊपर है, तो इसे आमतौर पर हाई डिलिवरी स्टॉक माना जाता है। ऐसे स्टॉक्स में निवेश करने की रणनीति आमतौर पर लंबी अवधि के निवेश और फंडामेंटल एनालिसिस पर आधारित होती है। निवेशकों को कंपनी की बैलेंस शीट, प्रॉफ़िट-लॉस स्टेटमेंट, कैश फ्लो और मैनेजमेंट क्वालिटी का विश्लेषण करना होता है। यह एक धैर्यवान प्रक्रिया है जिनसे दीर्घकालिक लाभ की उम्मीद होती है।

मुझे याद है, मेरे एक दोस्त ने एक बार बताया था कि उसने एक कंपनी के शेयर सिर्फ इसलिए खरीदे क्योंकि उसका डिलीवरी प्रतिशत हमेशा 70% से ऊपर रहता था। उसने कंपनी के फंडामेंटल्स पर रिसर्च की और समझा कि लोग इस कंपनी पर भरोसा करते हैं। सालों बाद, वह निवेश उसके लिए बहुत फायदेमंद साबित हुआ। यह दिखाता है कि कैसे डिलिवरी प्रतिशत सही निवेश का एक अच्छा संकेत हो सकता है।

डिलीवरी बनाम इंट्राडे ट्रेडिंग के बारे में अधिक जानकारी आपको अपनी निवेश यात्रा में मदद कर सकती है।

हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स (High Trading Volume Stocks) क्या होते हैं?

इसके विपरीत, हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स वे होते हैं जिनमें दिन के दौरान काफी संख्या में शेयर खरीदे और बेचे जाते हैं। इसका मतलब है कि इन स्टॉक्स में ट्रेडिंग एक्टिविटी बहुत ज़्यादा होती है। आप इसे बाज़ार में एक व्यस्त चौराहे की तरह समझ सकते हैं, जहाँ दिन भर लोग आते-जाते रहते हैं।

ट्रेडिंग वॉल्यूम का महत्व

ट्रेडिंग वॉल्यूम उच्च होने का मतलब है कि स्टॉक में बहुत सारे खरीदार और विक्रेता सक्रिय हैं। यह स्टॉक की लिक्विडिटी को बढ़ाता है। उच्च लिक्विडिटी का मतलब है कि आप जब चाहें आसानी से शेयर खरीद या बेच सकते हैं, बिना कीमतों को बहुत ज़्यादा प्रभावित किए।

यहां एक महत्वपूर्ण बिंदु समझना आवश्यक है: हाई वॉल्यूम जरूरी नहीं कि डिलिवरी भी हाई हो। कई बार ट्रेंडिंग या इंट्राडे ट्रेडिंग में भी वॉल्यूम हाई हो सकता है। ऐसा तब होता है जब ट्रेडर एक ही दिन में शेयर खरीदते और बेचते हैं, जिससे वॉल्यूम तो बढ़ता है, लेकिन डिलिवरी प्रतिशत कम रहता है, क्योंकि लोग शेयर अपने खाते में नहीं रखते, सिर्फ उसी दिन बेच देते हैं। जैसे कोई मेला लगा हो जहाँ बहुत भीड़ है, चीजें तेज़ी से बिक रही हैं लेकिन कोई उन्हें घर नहीं ले जा रहा, बस हाथ बदल रहे हैं।

क्यों चुने जाते हैं हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स?

  • इंट्राडे ट्रेडर्स के लिए आकर्षक: हाई वॉल्यूम स्टॉक्स सामान्यतः इंट्राडे ट्रेडर्स के लिए आकर्षक होते हैं। इनमें कीमतों में तेजी से बदलाव देखने को मिलते हैं। ये ट्रेडर्स इन छोटे-छोटे प्राइस मूवमेंट्स से मुनाफा कमाने की कोशिश करते हैं।
  • ट्रेंड का संकेत: उच्च वॉल्यूम अक्सर किसी स्टॉक में नए ट्रेंड की शुरुआत या मौजूदा ट्रेंड की पुष्टि करता है। यदि किसी स्टॉक की कीमत बढ़ रही है और वॉल्यूम भी बढ़ रहा है, तो यह एक मज़बूत अपट्रेंड का संकेत हो सकता है।
  • तेज़ एंट्री और एग्जिट: लिक्विडिटी अधिक होने के कारण, ट्रेडर अपनी पोज़िशन में तेज़ी से प्रवेश कर सकते हैं और बाहर निकल सकते हैं। यह शॉर्ट-टर्म ट्रेडिंग के लिए महत्वपूर्ण है जहाँ समय पर निर्णय लेने होते हैं।
  • बड़ी खबरें या घटनाएँ: कई बार किसी बड़ी खबर (जैसे कंपनी के नतीजे, मर्जर, अधिग्रहण) के कारण भी किसी स्टॉक में वॉल्यूम अचानक बढ़ जाता है। ट्रेडर इन खबरों पर प्रतिक्रिया देते हुए जल्दी-जल्दी खरीद-बिक्री करते हैं।

जोखिम

हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स में निवेश करना आकर्षक हो सकता है, लेकिन यह जोखिम भरा भी होता है। इनमें कीमतें बहुत तेज़ी से ऊपर या नीचे जा सकती हैं। यदि आप इंट्राडे ट्रेडिंग करते हैं, तो आपको बाज़ार के प्रति अत्यधिक सतर्क रहना होगा। आपको तकनीकी एनालिसिस, चार्ट पैटर्न और विभिन्न ट्रेडिंग इंडिकेटर्स का उपयोग करना होगा ताकि आप सही समय पर खरीद-बिक्री कर सकें।

कई बार, सिर्फ अफवाहों या सोशल मीडिया की चर्चा के कारण भी किसी स्टॉक में वॉल्यूम बढ़ जाता है। ऐसे में, यदि कोई निवेशक सिर्फ वॉल्यूम देखकर निवेश करता है, तो उसे नुकसान उठाना पड़ सकता है। इसलिए, हाई वॉल्यूम को हमेशा अन्य तकनीकी और मूलभूत विश्लेषण के साथ देखना चाहिए।

हाई डिलिवरी स्टॉक्स बनाम हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स: मुख्य अंतर

इन दोनों प्रकार के स्टॉक्स के बीच के अंतर को समझना आपकी निवेश यात्रा के लिए महत्वपूर्ण है। यहाँ एक विस्तृत सारणी दी गई है जो इन दोनों के बीच के प्रमुख भेदों को स्पष्ट करती है:

पक्ष हाई डिलिवरी स्टॉक्स हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स
परिभाषा शेयरों का खरीदा जाना और लंबी अवधि के लिए निवेशकों के डीमैट खाते में रखना। शेयरों का उच्च मात्रा में एक ही दिन में या कम समय में खरीद-बिक्री होना।
ट्रेडर का मकसद लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट और कंपनी के भविष्य के विकास में विश्वास। शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग, प्राइस मूवमेंट से त्वरित फायदा उठाना (इंट्राडे)।
डिलिवरी प्रतिशत आमतौर पर अधिक (60% या उससे ऊपर), यह दिखाता है कि शेयर होल्ड किए जा रहे हैं। कम या विभिन्न हो सकता है, अक्सर इंट्राडे ट्रेडिंग के कारण कम रहता है।
वॉल्यूम वॉल्यूम कम या मध्यम हो सकता है, मुख्य ध्यान होल्डिंग पर होता है। वॉल्यूम बहुत अधिक होता है, यह अत्यधिक खरीद-बिक्री गतिविधि को दर्शाता है।
लिक्विडिटी मध्यम से उच्च, क्योंकि निवेशक लंबी अवधि के लिए होल्ड करते हैं। बहुत उच्च, जिससे ट्रेडर्स को आसानी से एंट्री और एग्जिट मिल जाती है।
रिस्क-प्रोफ़ाइल कम उतार-चढ़ाव, कम तनाव, क्योंकि फोकस दीर्घकालिक रिटर्न पर है। उच्च उतार-चढ़ाव, मार्केट की तेजी या गिरावट के प्रति अत्यधिक संवेदनशील।
विश्लेषण आधार फंडामेंटल एनालिसिस, कंपनी के मूल सिद्धांत, भविष्य की संभावनाएँ। तकनीकी एनालिसिस, चार्ट पैटर्न, ट्रेडिंग इंडिकेटर्स, न्यूज़ आधारित ट्रेडिंग।
निवेश का समय-सीमा कई महीने से लेकर कई साल तक। कुछ मिनट से लेकर एक दिन तक (इंट्राडे), या कुछ दिनों तक (शॉर्ट-टर्म स्विंग)।
निवेशक का प्रकार लंबे समय के निवेशक, संस्थागत निवेशक, रिटायरमेंट प्लान करने वाले। इंट्राडे ट्रेडर्स, स्विंग ट्रेडर्स, एल्गो ट्रेडर्स।

फर्क को गहराई से समझना

यह महत्वपूर्ण है कि आप इन दोनों को एक ही सिक्के के दो पहलू न समझें। एक स्टॉक में हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम हो सकता है, लेकिन अगर उसका डिलिवरी प्रतिशत कम है, तो इसका मतलब है कि लोग उस स्टॉक में सिर्फ तात्कालिक मुनाफे के लिए खरीद-फरोख्त कर रहे हैं। वे उसे लंबी अवधि के लिए अपने पास नहीं रख रहे हैं। यह एक ट्रेंडिंग स्टॉक हो सकता है जो किसी खबर या इवेंट के कारण चर्चा में आया हो।

वहीं, एक हाई डिलिवरी स्टॉक में शायद हर दिन बहुत ज़्यादा वॉल्यूम न हो। लेकिन जो वॉल्यूम हो रहा है, उसमें से एक बड़ा हिस्सा निवेशकों के डीमैट खाते में जा रहा है। यह दर्शाता है कि बाज़ार के बड़े खिलाड़ी और समझदार निवेशक उस स्टॉक में अपनी पोजीशन बना रहे हैं और उसे रखने का इरादा रखते हैं। यह एक विश्वसनीय और मजबूत कंपनी का संकेत हो सकता है।

उदाहरण के तौर पर, सोचिए एक दिग्गज फार्मा कंपनी का शेयर है। उसमें शायद रोज़ाना वॉल्यूम उतना न हो जितना किसी नई, छोटी कंपनी में किसी खबर के बाद अचानक बढ़ गया हो। लेकिन उस फार्मा कंपनी का डिलिवरी प्रतिशत अगर 70% है, तो यह दर्शाता है कि निवेशक उस पर भरोसा कर रहे हैं। वहीं, नई कंपनी का वॉल्यूम 200% बढ़ गया हो, लेकिन डिलिवरी प्रतिशत केवल 20% हो। यह बताता है कि लोग सिर्फ शॉर्ट-टर्म गेम खेल रहे हैं।

आपके लिए कौन सा विकल्प बेहतर है?

यह सवाल आपकी निवेश शैली, जोखिम सहिष्णुता और वित्तीय लक्ष्यों पर निर्भर करता है।

यदि आप दीर्घकालिक निवेशक हैं:

  • आप कंपनी के बुनियादी सिद्धांतों में विश्वास रखते हैं।
  • आप बाज़ार के दैनिक उतार-चढ़ाव से परेशान नहीं होते।
  • आप चक्रवृद्धि (कम्पाउंडिंग) के जादू से धन बनाना चाहते हैं।
  • आप कम तनाव और स्थिर रिटर्न पसंद करते हैं।

ऐसे में, हाई डिलिवरी स्टॉक्स आपके लिए बेहतर विकल्प हैं। आपको फंडामेंटल एनालिसिस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। ऐसी कंपनियों को खोजना चाहिए जिनका व्यवसाय मॉडल मजबूत हो, अच्छा प्रबंधन हो, और लगातार विकास की संभावनाएँ हों। डिलिवरी प्रतिशत को एक सकारात्मक संकेत के रूप में देखें, जो दीर्घकालिक आत्मविश्वास को दर्शाता है।

यदि आप एक शॉर्ट-टर्म ट्रेडर हैं:

  • आप बाज़ार की हलचलों से त्वरित लाभ कमाना चाहते हैं।
  • आप उच्च जोखिम लेने को तैयार हैं।
  • आप तकनीकी विश्लेषण, चार्ट पैटर्न और ट्रेडिंग इंडिकेटर्स में माहिर हैं।
  • आप बाज़ार की खबरों पर तुरंत प्रतिक्रिया देते हैं।

ऐसे में, हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स आपके लिए अधिक उपयुक्त हो सकते हैं। ये स्टॉक आपको पर्याप्त लिक्विडिटी प्रदान करते हैं ताकि आप अपनी पोजीशन में आसानी से प्रवेश कर सकें और बाहर निकल सकें। आप इनमें ट्रेंड को पहचानकर छोटे-छोटे प्राइस मूवमेंट्स से लाभ कमा सकते हैं। हालांकि, इसमें अनुशासन, त्वरित निर्णय और जोखिम प्रबंधन बहुत महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

दोनों प्रकार के स्टॉक्स के अपने फायदे और जोखिम हैं। कोई भी एक दूसरे से ‘बेहतर’ नहीं है, बल्कि यह आपकी व्यक्तिगत निवेश रणनीति के लिए कौन सा ‘उपयुक्त’ है, यह मायने रखता है। एक सफल निवेशक बनने के लिए, आपको अपनी खुद की जोखिम लेने की क्षमता और समय-सीमा को समझना होगा। कई निवेशक दोनों रणनीतियों का मिश्रण भी अपनाते हैं। वे अपने पोर्टफोलियो का एक हिस्सा लंबी अवधि के लिए हाई डिलिवरी स्टॉक्स में लगाते हैं, और एक छोटा हिस्सा हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स में शॉर्ट-टर्म ट्रेडिंग के लिए रखते हैं।

आप अपनी निवेश यात्रा को नई दिशा दें और सही निर्णय लें, इसके लिए यह जानकारी महत्वपूर्ण है। शेयर बाज़ार में निवेश करने से पहले हमेशा अपनी रिसर्च करें और अगर ज़रूरत हो तो किसी वित्तीय सलाहकार से सलाह लें।

यहां एक वीडियो है जो आपको इस विषय को और गहराई से समझने में मदद कर सकता है:

शेयर बाज़ार में निवेश: एक विस्तृत दृष्टिकोण

यह वीडियो शेयर बाज़ार की बारीकियों को समझने में आपकी मदद करेगा।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

हाई डिलिवरी स्टॉक्स में निवेश क्यों करना चाहिए?

हाई डिलिवरी स्टॉक्स में निवेश करना उन लोगों के लिए फायदेमंद होता है जो लंबी अवधि में धन बनाना चाहते हैं। ये स्टॉक्स अक्सर फंडामेंटली मजबूत कंपनियों के होते हैं, जहाँ निवेशक कंपनी की ग्रोथ पर भरोसा करते हैं। अधिक डिलीवरी प्रतिशत स्थिरता और बड़े निवेशकों के विश्वास का संकेत देता है, जिससे दीर्घकालिक निवेश में जोखिम कम होता है।

हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स किसे आकर्षित करते हैं?

हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स मुख्य रूप से इंट्राडे ट्रेडर्स और शॉर्ट-टर्म निवेशकों को आकर्षित करते हैं। इन स्टॉक्स में उच्च लिक्विडिटी होती है, जिससे ट्रेडर आसानी से खरीद-बिक्री कर सकते हैं। वे कीमतों में छोटे-छोटे बदलावों से त्वरित मुनाफा कमाने की कोशिश करते हैं, जो बाज़ार की हलचलों पर आधारित होता है।

क्या हाई वॉल्यूम का मतलब हमेशा हाई डिलिवरी होता है?

नहीं, यह ज़रूरी नहीं है। हाई वॉल्यूम का मतलब बस यह है कि बहुत सारे शेयर खरीदे और बेचे जा रहे हैं। यदि अधिकांश ट्रेडिंग इंट्राडे हो रही है, तो वॉल्यूम उच्च होने के बावजूद डिलिवरी प्रतिशत कम होगा। डिलिवरी तभी उच्च होती है जब निवेशक शेयरों को अपने डीमैट खाते में लंबे समय के लिए ट्रांसफर करते हैं।

अपनी निवेश रणनीति कैसे तय करें?

अपनी निवेश रणनीति तय करने के लिए अपनी जोखिम सहिष्णुता, निवेश का समय-सीमा और वित्तीय लक्ष्यों का मूल्यांकन करें। यदि आप स्थिर, दीर्घकालिक विकास चाहते हैं, तो हाई डिलिवरी स्टॉक्स पर विचार करें। यदि आप त्वरित रिटर्न और उच्च जोखिम के लिए तैयार हैं, तो हाई ट्रेडिंग वॉल्यूम स्टॉक्स में ट्रेडिंग आपके लिए हो सकती है। दोनों का मिश्रण भी एक अच्छी रणनीति हो सकती है।

एक निवेशक के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात क्या है?

एक निवेशक के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात है जानकारी और अनुशासन। किसी भी स्टॉक में निवेश करने से पहले गहन रिसर्च करें, चाहे वह हाई डिलिवरी हो या हाई वॉल्यूम। अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखें और अपनी बनाई हुई रणनीति का पालन करें। बाज़ार की अफवाहों से बचें और हमेशा सीख-समझकर निर्णय लें।

नोट: इस लेख में दी गई जानकारी केवल सामान्य शैक्षिक उद्देश्यों के लिए है और इसे वित्तीय सलाह के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। शेयर बाज़ार में निवेश जोखिमों के अधीन है। निवेश करने से पहले हमेशा एक योग्य वित्तीय सलाहकार से परामर्श करें।

चित्र/ग्राफ सुझाव:

  1. एक इन्फोग्राफिक जो “डिलिवरी प्रतिशत” की गणना और उसके महत्व को दर्शाता है।
  2. एक लाइन ग्राफ जो किसी स्टॉक के ट्रेडिंग वॉल्यूम और डिलिवरी प्रतिशत को समय के साथ दर्शाता है, ताकि दोनों के बीच के अंतर को विज़ुअल रूप से समझाया जा सके।

आउटबाउंड लिंक्स के बारे में नोट: शोध ड्राफ्ट में बाहरी वेबसाइटों के लिए कोई विशिष्ट URL प्रदान नहीं किए गए थे। दिए गए निर्देशों के अनुसार, “Outbound links: only from draft” और “बिल्कुल भी [1], [2], {1}, {2} या किसी भी नंबर/ब्रैकेट से reference-style links न डालें”, इसलिए इस लेख में कोई आउटबाउंड लिंक शामिल नहीं किया गया है।

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Amardeep Singh

मेरा नाम रवि सिंह है, मैं एक कंटेंट राइटर के तौर पर काम करता हूँ और मुझे लेख लिखना बहुत पसंद है। 4 साल के ब्लॉगिंग अनुभव के साथ मैं हमेशा दूसरों को प्रेरित करने और उन्हें सफल ब्लॉगर बनाने के लिए ज्ञान साझा करने के लिए तैयार रहता हूँ।

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